How to introduce English in early grades?

 How to introduce English in early grades ? (प्रारम्भिक कक्षाओं में अंग्रेजी भाषा कैसे शुरू करें ? )

 


जिन राज्यों में English को second language के रूप में पढ़ाया जाता है या जिन बच्चों को English द्वितीय भाषा (second language) के रूप में सिखाना होता हैं वहाँ अंग्रेजी भाषा को कैसे सिखाये ?

 मै अपने अनुभव share कर रहा हूँ जो कि series (श्रृंखला) के रूप में प्रकाशित करूँगा,उम्मीद है कि सभी अभिभावक व शिक्षकों को अपने बच्चों को English सीखाने में मददगार सिद्ध होंगे |

 

जब हम भाषा सिखाने की बात करते है तो जेहन में एक सवाल आता है कि “हम अपनी पहली भाषा (मातृभाषा) कैसे सीखते है? या एक छोटा बच्चा अपनी मातृभाषा कैसे सीखता है?"

 

How do we learn our first language? Mother tongue?

                                   or

how does a child learn his first language?

 

एक बच्चा निम्न तरीकों से अपनी मातृभाषा सीखता हैं |

1 – Observation and Listening -  बच्चे अपने आप-पास की चीजों को observe करते है,सुनते है तो अपनी प्रतिक्रिया देने की कोशिश करते है |

2 – Gestures - एक छोटा बच्चा अपने माता –पिता,दादा–दादी द्वारा किये गए इशारों को देखता है और समझकर अपनी reaction करता है |

3 – contextualization and Repetition जब बच्चा अपने मम्मी, पापा,दादा दादी, भैया,दीदी व बड़ों के द्वारा किये गए इशारों, शब्दों के सन्दर्भ में ( जैसे पेशाब करने के लिए सी –सी  कहने पर बच्चा पेशाब करता है ) अपनी प्रतिक्रिया करता है तो भी भाषा सीख रहा होता है क्योकि सुनना भी भाषा सीखने का एक भाग है और जब बच्चा मम,मम, पा, पा शब्दों को बार बार दोहराता है तो भी भाषा सीख रहा होता है |

4 Needs- जब बच्चे को भूख लगाती है या प्यास लगती है तो वह या तो रोता है या पा, पा कहता है तो बच्चा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए भी भाषा सीखने की कोशिश करता है |

5-fearless Environment.

6 – self –Correction.

7 –Lot of opportunities to express.

8-Burden-less and unconscious learning.

 

बच्चे से हर समय सही चीज बोलने की अपेक्षा नहीं की जाती ,वह शुरू-शुरू में बहुत गलतियाँ करता है, गलत तरीके से बोलता है,उसको टोका टाकी नहीं की जाती, बल्कि उसे मौके दिए जाते हैं कि वो अपने आप- पास बार- बार उन्हीं शब्दों को सुनकर खुद ब खुद सही चीज सीख लें | उनको डांट पड़ने का डर नहीं होता, दबाव नहीं होता,बिना ज्यादा कुछ सोचे ( unconsciously) वह अपनी भाषा सीख लेता हैं |

उसको अपने आस-पास (परिवेश)से खूब inputsमिलते रहते है |

 

जब बच्चा अपने आस-पास से सुन रहा होता है हाव-भावों को observe कर रहा होता है तो उसको हम inputs कह सकते है,और जब वह अपनी प्रतिक्रिया बोलकर व इशारों से व्यक्त करता है तो उसको हम outputs कह सकते है |

 

किसी भी भाषा को सीखने के लिए इस प्रकार का set-up जिसे natural set-up भी कहा जाता है, यह भाषा सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | इसमें बच्चे को दिए जाने वाले input का तरीका इतना कारगार होता है कि सीखने वाले और सिखाने वाले दोनों को ही एहसास नहीं होता और भाषा सीख ली जाती हैं |

जब बच्चे को अपने परिवेश से input इतना सारा मिलेगा तो ज़ाहिर सी बात है output भी अच्छा ही होगा | जब बात विद्यालय में second language सीखने की आती है तो तब तक बच्चे अपनी भाषा में खुद को व्यक्त करने में सशक्त हो चुके होते हैं, वे confident होते हैं,वे बेबाक अपनी बात रखते हैं | हम बड़ों में जो झिझक और डर होता हैं कि "अरे हमने कुछ कहा और हम गलत हुए तो क्या होगा"| ये आपने बच्चों में कभी नहीं देखा होगा |

उनको जिज्ञासा भी होती है,खूब सवाल भी पूछते हैं |

परन्तु भाषा सीखना इतना ही आसान है तो स्कूल में आकर English भाषा सीखने समय क्या हो जाता है ? इतनी परेशानी क्यों आती है? क्यों आत्मविश्वास धरातल पर पहुँच जाता है और क्यों उनकी जिज्ञासा ख़त्म हो जाती है? 

 

English द्वितीय भाषा ( second language ) के रूप में सीखने में challenges क्या-क्या हो सकते हैं ?

 

1- अपनी मातृभाषा न होने के कारण नैसर्गिक रूप से दूसरी भाषा सीखने में असहजता महसूस होना |

2 इस भाषा का डर | यह डर आता कहाँ से है? कि ये बाहर के लोगों की भाषा है,अपनी नहीं है, सिर्फ पढ़े लिखे लोग इस भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं |  हम इस भाषा से अपनत्व नहीं feel कर पाते | ये डर सिर्फ बच्चों में ही नहीं बड़ों में भी होता है |

लेकिन आप कभी ध्यान से सोचें तो समझ आएगा की या भाषा आपकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है ,कैसे ? आप जो भी बाज़ार से सामान जैसे kurure, snacks,cold drink, biscuit खरीदते हो तो आप English भाषा का प्रयोग करते हो | और हम अपने दैनिक जीवन में बोल चाल में भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते है जैसे phone रिसीव करते समय Hello, good morning, ok, bye etc.तो ये भाषा हमसे अलग थलग कैसे हुई?

 

अब महत्वपूर्ण यह है कि जब हम किसी बच्चे को English द्वितीय भाषा सीखाना चाहते है या विद्यालय में दूसरी भाषा के रूप में English को introduce करना होता है तो बच्चों को नयी भाषा सीखने में असहजता महसूस होना स्वाभाविक है अब सवाल यह उठता है की बच्चों के मन से इस डर को हटाएं कैसे?

स्कूल में पढ़ाई की शुरुआत का जो phase होता है, वही decide करता है कि यह डर रहेगा या हटेगा,तो शुरूआत उन्ही चीजों से करें जिससे बच्चा पहले से ही परिचित हो

जैसे- good, hello, biscuit, mummy, papa, dog etc.....

3 - अपने आस –पास ( परिवेश ) में अंग्रेजी भाषा न बोली जाने के कारण input न मिलना | जो बच्चे गरीब तबके की community से हैं, resources का अभाव रहता है | आस-पास अंग्रेजी भाषा का प्रयोग नहीं होता है उन बच्चों को English में inputs नहीं मिल पाता या जितना भी मिलता है उसे आत्मसात नहीं कर पाते |

 

आप,हम और पढ़े लिखे लोग कैसे English सीख पाते हैं?

 

हमारे आस-पास और घर में अंग्रेजी बोलने वाले लोग हमें मिल ही जाते है | T.V या phone पर कोई movie, series, videos, articles या ads देखकर, news paper, story book, magazine पढ़कर market जाते समय बड़े-बड़े होर्डिंग, बोर्डों की सूचनाएं देखकर और दैनिक जीवन में face to face लोगों, मित्रों से वार्तालाप कर English के बहुत से शब्द और वाक्य प्रायःunconsciously सीख जाते है |

 

 हम अंग्रेजी भाषा में बोल और लिख सकते है क्योकि हमें अपने विद्यालयी दिनों में हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी भाषा में भरपूर exposureमिला |

उसी प्रकार बच्चों को मातृभाषा में भरपूर exposure मिलने से वे अपनी भाषा में confidently बात करते है,अपनी बात रखते हैं, प्रश्न पूछते है, खुल कर बात करने में सहज महसूस करते हैं|

अंग्रेजी भाषा सीखने में सबसे बड़ी चुनौती है Exposure की | जब input ही नहीं मिल रहा है तो output कैसे मिल पायेगा |

 

अगर बच्चे को Exposure  घर और परिवेश से नहीं मिल पा रहा है तो क्या school में दिया जा सकता हैं?

हाँ, बिलकुल दिया जा सकता है | जैसे कि –

बच्चों से उसके अंग्रेजी में परिचित शब्दों से बातचीत करना,चार्ट, फ़्लैश कार्ड, poem recite,राईमिंग वर्ड, story telling, print rich environment और labelling द्वारा बच्चों को अंग्रेजी शब्दों का Exposure दिया जा सकता है | कभी कभी इतना Exposure देने के बाद भी बच्चों के learning में कुछ कमी रह जाती  है या अपेक्षित कम सीख पाते है क्योंकि –

 

भाषा सीखने का एक principle जो ऊपर बताया गया है natural set-up. इसी माहौल को हम language conducive environment ( भाषा अनुकूल वातावरण ) कहते हैं, ऐसा वातावरण जहाँ बच्चों पर सही जबाब देने का दबाव न हो, उसको खुद गलतियां सुधारने का मौका मिले,वह अपने आस-पास चल रही गतिविधियों को देख और सुनकर सीख पाए,उसको खूब सारे मौके दिए जाएँ,अपनी बात कहने के,पढने के,लिखने के |

कहीं हम अपने विद्यालय में language conducive environment ( भाषा अनुकूल वातावरण ) और natural set-up बनाने में कोई भाग नजरंदाज तो नहीं कर रहे है क्योंकि syllabus को साथ लेते हुए इतना सब कर पाना आसन कार्य नहीं है |

 

क्या विद्यालयी syllabus के साथ- साथ विद्यालय में language conducive environment ( भाषा अनुकूल वातावरण ) और natural set-up बनाया जा सकता है ? इस पर चर्चा अगले भाग पर, आपके सुझावों, comments  का इंतज़ार रहेगा |

 language conducive environment (भाषा अनुकूल वातावरण)

                     “धन्यवाद”👍👍

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