घुघुतिया - उत्तरायणी - मकर संक्रांति | पुसुड़ी

 घुघुतिया – उत्तरायणी – मकर संक्रांति | पुसुड़ी

हमारे देश के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति का त्योहार अलग-अलग नामों अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर सक्रांति या तिल संक्रांति, असम में बिहू केरल में ओणम, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुलगुजरात में उत्तरायन  (पतंग पर्व) के नाम से मनाई जाती है |
सूर्य की दक्षिणायन से उत्तरायण होने पर भारत वर्ष में उजाले में वृद्धि के प्रतीक के रूप में मकर संक्रांति”का पर्व मनाया जाता है उत्तराखंड में इसी को उत्तरायणी भी कहते हैं यह माघ माह के पहले दिन (प्रथम गते )को  मनाया जाता है |

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति,उत्तरायणी के साथ-साथ घुघुतिया भी मनाते हैं और इसके ठीक पिछले दिन पौष मास के अंतिम दिन पुसुड़ी त्योहार भी मनाया जाता है

मकर संक्रांति – सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है अतः मकर संक्राति कहा जाता हैं और सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायन होने से उत्तरायणी कहते हैं

पुसुड़ी – पौष मास को खरमास भी कहा जाता है इस महीने किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं होते हैं | मकर संक्रांति से मांगलिक कार्य की शुरुआत व घुघुती त्यौहार में कौवों को खिलाने के लिए घुघुती व अन्य पकवान पूस माह के अंतिम दिन पुसुड़ी त्यौहार के रूप कुंमाऊं में कही –कहीं मनाया जाता हैं |

घुघुतिया – कुमाऊं में मकर संक्रांति के साथ ही घुघुतिया त्यौहार भी मनाया जाता है |घुघुतिया के एक दिन पहले आटे और गुड़ को गूँथकर उसकी लोईयाँ बनाकर उन्हें दोनों तरफ से मोड़कर विशेष आकार दिए जाते हैं  पकवानों को तलने के बाद  एक माला में पिरोया जाता है माला के बीच में संतरा और ईख की गंडेरी पिरोई जाती है इस कार्य को बच्चे बड़े रुचि के साथ करते हैं उत्तरायनी या घुघुतिया त्यौहार के दिन बच्चे सुबह नहा धोकर(क्योकि घुघुतिया त्यौहार के साथ-साथ उत्तरायणी पर्व भी मनाने के कारण) गले में माला पहन कर ऊंचे पहाड़ी स्थान पर चले जाते हैं और कौओं को अपना पकवान(घुघुती) खिलाने के लिए बुलाते हैं साथ ही गाते हैं




काले कौवा काले,

घुघुती माला खाले |

ले कौवा भात,

मै के दे सुनक थात |

ले कौवा लगड़,

मै के दे भैबनों दग |

ले कौवा बौड़ ,

मै के दे सुनको घड़ ,

ले कौवा कवे,

मै के दे भल ज्वे |

उत्तराखंड में घुघुतिया त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?

16 शताब्दी में कुमाऊं में चंद्र वंश के राजा कल्याण चंद राज करते थे राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी |जिससे वे दुखी रहते थे | राजा का कोई उत्तराधिकारी न होने से उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य उसे ही मिलेगा
|
राज्य के पुरोहितों के कहने पर राजा अपनी पत्नी सहित बागनाथ मंदिर गए और भगवान् शिव से  संतान प्राप्ति की प्रार्थना की| बागनाथ देव की कृपा से राजा के घर एक बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम निर्भय चंद रखा गया| उसकी मां उसको प्यार से घुघुती भी कहती थी| रानी ने घुघुती (निर्भय चंद) के गले में एक मोतियों की माला पहना रखी थी जिसमें घुंगरू भी लगाए हुए थे| घुघुती इस माला को पहन कर खुश रहता था और हमेशा खेलता रहता था | इकलौता बच्चा होने कारण वह बहुत ज्यादा जिद्दी भी था और छोटी छोटी बातों पर अपनी मां से जिद करता था तो मां उसे यह कहती थी कि तू जिद मत कर अन्यथा तेरे गले में जो माला है वह मैं कौवे को दे दूंगी और वह कहती थी काले कौवा आजा घुघुती माला खा जा यह सुनकर कभी कौवे भी आ जाते और कौवों को देखकर घुघुती अपनी जिद छोड़ देता, और मां के बुलाने पर जब बहुत सारे कौवे  आ जाते तो रानी उनको खाने की चीजें दे देती | और धीरे-धीरेघुघुती और कौवों में दोस्ती सी हो गई |


समय बीतता गया और मंत्री को अब लगने लगा कि उके राजगद्दी पाने के मंसूबों में पानी फिर रहा है वह राजगद्दी पाने के लिए नई-नई तरकीब सोचने लगा फिर एक दिन उसने एक षड्यंत्र रचा और अपने साथियों के साथ घुघुती को उठाकर ले गया | जब मंत्री उसे जंगल की तरफ ले जा रहा था तो तभी एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से कांव-कांव करने लगा क्योकिं कौवा घुघुती को को जानता था और कौवे की काँव-काँव सुनकर घुघुती भी जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला उतार कर दिखाने लगा,कांव कांव की आवाज सुनकर साथी कौवे भी इकट्ठा हो गए और मंत्री व उसके साथियों पर चोंच और पंजों से हमला करना शुरू किया | कौवों के हमले से घबराकर मंत्री व उसके साथी वहाँ से भाग गए |उनमें से एक कौवा घुघुती के गले वाली मोतियों की माला को चोंच में डालकर महल की तरफ गया और माला को राजमहल के आंगन में गिरा कर जोर जोर से कांव-कांव करने लगा| राज महल में घुघुती को न पाकर सारे लोग चिंतित थे कौवे की आवाज सुनकर और माला को देखकर मां समझ गई कि घुघुती किसी मुसीबत में हैं | कौवे की कांव कांव सुनकर यह अनुमान लगाया कि यह कौवा घुघुती  के बारे में कुछ जानता है और कुछ कहना चाह रहा है यह देख राजा मंत्रियों के साथ कौवे के पीछे जंगल की ओर चल पड़े  जंगल में कौवा एक जगह पेड़ पर रुक गया |

 राजा और उनके सैनिकों ने घुघुती को एक पेड़ के नीचे सुरक्षित पा लिया| जिसकी रक्षा कौवों के झुण्ड द्वारा की जा रही थी | राजा ने अपने बेटे को गले से लगाया और अपने सैनिकों के साथ राजमहल वापस आ  गए | घर आने पर मां ने कहा कि अगर यह माला इसके गले में न होती तो आज घुघुती जिंदा न होता| राजा ने मंत्री व उसके षडयंत्रकारी साथियों को पकड़कर मृत्यु दंड दे दिया |

 घुघुती के जीवित घर वापसी से मां ने खुश होकर कौवों के लिए बहुत प्रकार के पकवान बनाए जिसमें मीठे पकवान भी थे और घुघुती को बुलाकर उन्हें खिलाने को कहा |  धीरे- धीरे यह बात पूरे  कुमाऊँ में फ़ैल गयी और घुघुतिया त्यौहार मनाने लगे |

 

 

                                         “धन्यवाद” 👍👍

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